Navratri Days
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayan
Significance of Navratri
India is a country of festivals and celebration. It
has a very rich historical and cultural background. Each Indian festival
has a proper meaning, reason and significance behind its celebration.
Fun and enjoyment are the aspects of the festivals, which sets the
festive mood. Navratri, as the name suggests, means nine nights. It is
one of the important Hindu festivals. It is dedicated to the worship of
Goddess Durga, the deity of Power. Like other festivals of India,
Navratri also has a significance and meaning attached to it. Each day of
the nine-day festival are dedicated to the worship of different forms
of Goddess Durga, which unfolds the religious importance of the
occasion. Go through the following lines to know more about the
significance of Navratri festival.
Significance of Navratri
The First Three Days of Navratri
The first three days of Navratri are devoted to the worship of the Goddess Durga. This is the period, when her energy and power are worshipped. Each day is dedicated to a different appearance of Durga. Kumari, which signifies the girl child, is worshipped on the first day of the festival. Parvati, who is the embodiment of a young woman, is worshipped on the second day. The destructive aspects of Goddess Durga symbolize the commitment to acquire triumph over all the evil tendencies. Hence, on the third day of Navratri, Goddess Kali is worshipped, who represents the woman who has reached the stage of maturity.
Fourth to Sixth Days of Navratri
When a person acquires triumph over evil tendencies of ego, anger, lust and other animal instincts, he/she experiences a void. This void is filled with spiritual wealth. For the purpose, the person approaches Goddess Lakshmi, to acquire all the materialistic, spiritual wealth and prosperity. This is the reason why the fourth, fifth and sixth day of Navratri are dedicated to the worship of Lakshmi - the goddess of prosperity and peace.
Although the individual has acquired victory over evil tendencies and wealth, he is still deprived of true knowledge. Knowledge is required to live the life of a humane, even though he/she is prospered with power and wealth. Therefore, Goddess Saraswati is worshipped on the fifth day of Navratri. All the books and other literature materials are gathered in one place and a 'diya' (earthen lamp) is lit in front of the deity, to invoke the goddess and seek her blessings. Till the time the books are kept at the puja room, the students would not study.
Seventh and Eighth Day of Navratri
The seventh day is dedicated to worshipping Saraswati, the goddess of art and knowledge. Prayers are offered with an aim to seek spiritual knowledge. A 'yagna' is performed on the eight day. This comprises of a sacrifice honoring goddess Durga as well as bids her farewell. The sacrifice or offering is made out of clarified butter (ghee), rice pudding known as kheer and sesame seeds.
Ninth Day of Navratri
The ninth day is the final day of Navratri celebrations. It is also known as 'Mahanavami'. On the day, Kanya puja is performed to worship nine young girls, who have not yet reached the stage of puberty. These nine girls symbolize one of the nine forms of goddess Durga. The feet of girls are washed to welcome the goddess and show respect to her. The girls are offered a set of new clothes as a gift from the devotees at the end of the puja.
Significance of Navratri
The First Three Days of Navratri
The first three days of Navratri are devoted to the worship of the Goddess Durga. This is the period, when her energy and power are worshipped. Each day is dedicated to a different appearance of Durga. Kumari, which signifies the girl child, is worshipped on the first day of the festival. Parvati, who is the embodiment of a young woman, is worshipped on the second day. The destructive aspects of Goddess Durga symbolize the commitment to acquire triumph over all the evil tendencies. Hence, on the third day of Navratri, Goddess Kali is worshipped, who represents the woman who has reached the stage of maturity.
Fourth to Sixth Days of Navratri
When a person acquires triumph over evil tendencies of ego, anger, lust and other animal instincts, he/she experiences a void. This void is filled with spiritual wealth. For the purpose, the person approaches Goddess Lakshmi, to acquire all the materialistic, spiritual wealth and prosperity. This is the reason why the fourth, fifth and sixth day of Navratri are dedicated to the worship of Lakshmi - the goddess of prosperity and peace.
Although the individual has acquired victory over evil tendencies and wealth, he is still deprived of true knowledge. Knowledge is required to live the life of a humane, even though he/she is prospered with power and wealth. Therefore, Goddess Saraswati is worshipped on the fifth day of Navratri. All the books and other literature materials are gathered in one place and a 'diya' (earthen lamp) is lit in front of the deity, to invoke the goddess and seek her blessings. Till the time the books are kept at the puja room, the students would not study.
Seventh and Eighth Day of Navratri
The seventh day is dedicated to worshipping Saraswati, the goddess of art and knowledge. Prayers are offered with an aim to seek spiritual knowledge. A 'yagna' is performed on the eight day. This comprises of a sacrifice honoring goddess Durga as well as bids her farewell. The sacrifice or offering is made out of clarified butter (ghee), rice pudding known as kheer and sesame seeds.
Ninth Day of Navratri
The ninth day is the final day of Navratri celebrations. It is also known as 'Mahanavami'. On the day, Kanya puja is performed to worship nine young girls, who have not yet reached the stage of puberty. These nine girls symbolize one of the nine forms of goddess Durga. The feet of girls are washed to welcome the goddess and show respect to her. The girls are offered a set of new clothes as a gift from the devotees at the end of the puja.
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
Navratri Day 6 – Maa Katyayani
The
goddess of Vrindavan, she is depicted as having four arms and three
eyes, she is seated on a lion. She is the sixth swarup of Ma Durga and
is known as Maa Katyayani. The son of “Kat” was “Katya”. Rishi Katyayan
was born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a
desire to get Ma as his daughter. As a result she took birth as a
daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She killed the
demon Mahishasur.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
To get Krishna as a husband gopis worship Ma Katryayani in Braj. So she is established as the Queen of Braj.
:: Spiritual importance of Katyayani Navdurga Pooja ::
Goddess Katyayani puja is performed on the
sixth day during Durga Navratra. On the day of Katyayani puja, Yogis or
Sadhak who perform the pooja keep their mind on Ajna Chakra or Agna
Chakra. Ajna Chakra is the most important Chakra or the step in
spiritual practice. During this pooja, devotees offer themselves to
Katyayani. Katyayani pooja during Durga Navratri makes devotees mentally
and physically fit and keeps them in a state to face any challenges in
their life.
:: Dhyana Mantra of Katyayani Maa:
Chandrahaasojhwala karaa Shardhula varavaahana |
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
Katyayani shubham dadyath devi danava ghathinee ||
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा का
छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना
होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक
तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
:: ध्यान मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात: मां दुर्गा के छठें स्वरूप का नाम
कात्यायनी हैं। इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है। देवी
कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी
की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा
में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल
का फूल है।
:: देवी कात्यायनी के मंत्र ::
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
:: माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ ::
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
:: देवी कात्यायनी की कवच ::
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
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Gayatri Solution Group
{ Jayesh
Patel} (Live In
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